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ख़ुद अपने आप को धोका दिया है | शाही शायरी
KHud apne aapko dhoka diya hai

ग़ज़ल

ख़ुद अपने आप को धोका दिया है

मुख़तार शमीम

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ख़ुद अपने आप को धोका दिया है
हमारे साथ ये अक्सर हुआ है

ये मुझ से ज़िंदगी जो माँगता है
न जाने कौन ये मुझ में छुपा है

यही मेरी शिकस्तों का सिला है
कोई मेरे बदन में टूटता है

किताब-ए-गुल का रंगीं हर वरक़ है
तुम्हारा नाम किस ने लिख दिया है

सलीब-ए-वक़्त पे तन्हा खड़ा हूँ
ये सारा शहर मुझ पर हंस रहा है

कभी नींद आ गई दीवानगी को
कभी सहरा भी थक कर सो गया है

'शमीम' इक बर्ग-ए-आवारा था 'जामी'
ख़लाओं में कहीं अब खो गया है