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ख़ुद अपना बोझ उठाओ यहाँ से कूच करो | शाही शायरी
KHud apna bojh uThao yahan se kuch karo

ग़ज़ल

ख़ुद अपना बोझ उठाओ यहाँ से कूच करो

क़ासिम याक़ूब

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ख़ुद अपना बोझ उठाओ यहाँ से कूच करो
ज़मीं पे पाँव धरो आसमाँ से कूच करो

फ़क़त उदासी मिरा दुख बता नहीं पाती
ऐ मेरे आँसुओ दर्द-ए-निहाँ से कूच करो

है उस के अक्स-ए-गुरेज़ाँ की जल्वा-आराई
अब अपने घर में रहो आस्ताँ से कूच करो

ये क्या कि एक जगह पर ही उम्र गुज़रेगी
रहीन-ए-जिस्म उतारो जहाँ से कूच करो

चलो कि ढूँड के लाएँ कहीं से जज़्ब-ए-अदा
उठो कि रह-गुज़रान-ए-बुताँ से कूच करो