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खोटा सिक्का कोई ले मुमकिन नहीं | शाही शायरी
khoTa sikka koi le mumkin nahin

ग़ज़ल

खोटा सिक्का कोई ले मुमकिन नहीं

ग़नी गयूर

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खोटा सिक्का कोई ले मुमकिन नहीं
और बटवे में रहे मुमकिन नहीं

इश्क़ तेरे ने उजाड़ा मेरा दिल
ग़ैर की उल्फ़त उगे मुमकिन नहीं

होने को है उम्र तेरे कूचे में
ये क़दम आगे बढ़े मुमकिन नहीं

डूब कर भी जारी रहता है सफ़र
मेहर मग़रिब से चढ़े मुमकिन नहीं

अपने थैले में ही रहने दो उसे
ऊन की बिल्ली चले मुमकिन नहीं