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ख़िज़्र जैसा है राहबर मुझ में | शाही शायरी
KHizr jaisa hai rahbar mujh mein

ग़ज़ल

ख़िज़्र जैसा है राहबर मुझ में

ग़नी गयूर

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ख़िज़्र जैसा है राहबर मुझ में
मुझ को दरपेश है सफ़र मुझ में

कश्ती-ओ-ना-ख़ुदा बहुत ख़तरे
कई तूफ़ाँ कई भँवर मुझ में

ख़ून से तर-ब-तर गली-कूचे
दस्त-ए-क़ातिल है ज़ोर पर मुझ में

कोई तेशा-ब-दस्त फिरता है
क़र्या क़र्या है बस शरर मुझ में

जिस तरह से हिरन पहाड़ों पर
लौट कर आता है हुनर मुझ में