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ख़िज़्र-ए-मंज़िल न था इब्न-ए-मरयम न था | शाही शायरी
KHizr-e-manzil na tha ibn-e-maryam na tha

ग़ज़ल

ख़िज़्र-ए-मंज़िल न था इब्न-ए-मरयम न था

मंज़ूर हुसैन शोर

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ख़िज़्र-ए-मंज़िल न था इब्न-ए-मरयम न था
ग़म जहाँ था कोई शामिल-ए-ग़म न था

दिल को अपनी तबाही का कुछ ग़म न था
उस की आँखों का इरशाद मुबहम न था

इस से पहले भी सौ बार धड़का था दिल
दिल धड़कने का लेकिन ये आलम न था

कब फ़लक पर सितारे फ़रोज़ाँ न थे
कब ज़मीं पर सितारों का मातम न था

जाम-ए-जम में जो सदियों सुलगता रहा
और क्या था अगर ख़ून-ए-आदम न था

उस ने पूछा न था 'शोर' जब तक मिज़ाज
आँख नम नम न थी दर्द कम कम न था