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ख़िर्क़ा रेहन-ए-शराब करता हूँ | शाही शायरी
KHirqa rehn-e-sharab karta hun

ग़ज़ल

ख़िर्क़ा रेहन-ए-शराब करता हूँ

मीर मोहम्मदी बेदार

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ख़िर्क़ा रेहन-ए-शराब करता हूँ
दिल-ए-ज़ाहिद कबाब करता हूँ

नाला-ए-आतिशीं से यक दम मैं
दिल-ए-फ़ौलाद आब करता हूँ

आह-ए-सोज़ाँ ओ अश्क-ए-गुल-गूँ से
कार-ए-बर्क़-ओ-सहाब करता हूँ

दाग़-ए-सोज़ान-ए-इश्क़ से दिल को
चश्मा-ए-आफ़्ताब करता हूँ

बर्क़ को भी सकूँ हुआ आख़िर
मैं हनूज़ इज़्तिराब करता हूँ

ताकि 'बेदार' उस से हो आबाद
ख़ाना-ए-दिल ख़राब करता हूँ