ख़िर्क़ा रेहन-ए-शराब करता हूँ
दिल-ए-ज़ाहिद कबाब करता हूँ
नाला-ए-आतिशीं से यक दम मैं
दिल-ए-फ़ौलाद आब करता हूँ
आह-ए-सोज़ाँ ओ अश्क-ए-गुल-गूँ से
कार-ए-बर्क़-ओ-सहाब करता हूँ
दाग़-ए-सोज़ान-ए-इश्क़ से दिल को
चश्मा-ए-आफ़्ताब करता हूँ
बर्क़ को भी सकूँ हुआ आख़िर
मैं हनूज़ इज़्तिराब करता हूँ
ताकि 'बेदार' उस से हो आबाद
ख़ाना-ए-दिल ख़राब करता हूँ
ग़ज़ल
ख़िर्क़ा रेहन-ए-शराब करता हूँ
मीर मोहम्मदी बेदार