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ख़िरद यक़ीं के सुकूँ-ज़ार की तलाश में है | शाही शायरी
KHirad yaqin ke sukun-zar ki talash mein hai

ग़ज़ल

ख़िरद यक़ीं के सुकूँ-ज़ार की तलाश में है

मुहिब आरफ़ी

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ख़िरद यक़ीं के सुकूँ-ज़ार की तलाश में है
ये धूप साया-ए-दीवार की तलाश में है

ख़ता चमन की कि है मुब्तला-ए-लाला-ओ-गुल
बहार सिर्फ़ ख़स-ओ-ख़ार की तलाश में है

छलक रहा है क़बा-ए-हया से उस का शबाब
शराब जुरअत-ए-मय-ख़्वार की तलाश में है

वो नुक़्ता हूँ जो भरम है नुक़ूश-ए-हस्ती का
ज़माना क्या मिरे असरार की तलाश में है

वो औज हूँ जो ख़लल है निज़ाम-ए-पस्ती का
वो जुर्म हूँ जो सर-ए-दार की तलाश में है

ख़स आज़मा है 'मुहिब' शो'ला-ज़ार बातिल से
नया ख़लील है गुलज़ार की तलाश में है