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ख़िरद ऐ बे-ख़बर कुछ भी नहीं है | शाही शायरी
KHirad ai be-KHabar kuchh bhi nahin hai

ग़ज़ल

ख़िरद ऐ बे-ख़बर कुछ भी नहीं है

सय्यद अमीन अशरफ़

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ख़िरद ऐ बे-ख़बर कुछ भी नहीं है
न हो सौदा तो सर कुछ भी नहीं है

चमक सारी दरून-ए-शाख़-ए-गुल है
निहाल-ओ-शाख़ पर कुछ भी नहीं है

ख़ला में बाल-ओ-पर माइल-ब-पर्वाज़
ज़मीं पर घर शजर कुछ भी नहीं है

हक़ीक़त भी है पाबंद-ए-तग़य्युर
जहाँ में मो'तबर कुछ भी नहीं है

सहम जाता हूँ लुत्फ़-ए-दोस्ताँ से
कि दुश्मन हो तो डर कुछ भी नहीं है

ये सारा फ़ासला दिल का है वर्ना
मियान-ए-दश्त-ओ-दर कुछ भी नहीं है