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खिंच के महबूब के दामन की तरफ़ | शाही शायरी
khinch ke mahbub ke daman ki taraf

ग़ज़ल

खिंच के महबूब के दामन की तरफ़

अर्श मलसियानी

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खिंच के महबूब के दामन की तरफ़
आ गए और भी उलझन की तरफ़

तुम छुपाते रहो कितना उस को
बिजलियाँ आएँगी ख़िर्मन की तरफ़

हर तरफ़ नूर का तड़का देखा
कौन आया मिरे आँगन की तरफ़

ऐ चमन वालो रुकूँ या जाऊँ
इक धुआँ सा है नशेमन की तरफ़

ख़ैर-मक़्दम को झुकेंगी शाख़ें
इक ज़रा आओ तो गुलशन की तरफ़

'अर्श' किस दोस्त को अपना समझूँ
सब के सब दोस्त हैं दुश्मन की तरफ़