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खिले जो फूल तो मुँह छुप गया सितारों का | शाही शायरी
khile jo phul to munh chhup gaya sitaron ka

ग़ज़ल

खिले जो फूल तो मुँह छुप गया सितारों का

शहज़ाद अहमद

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खिले जो फूल तो मुँह छुप गया सितारों का
मिसाल-ए-अब्र चला कारवाँ बहारों का

न मुझ से पूछ शब-ए-हिज्र दिल पे क्या गुज़री
ये देख हाल है क्या मेरे ग़म-गुसारों का

नई बहार हँसे इक नया चमन खिल जाए
समझ सके कोई मतलब अगर इशारों का

शब-ए-सियाह के लम्हे गुज़ार लेने दो
घड़ी घड़ी न करो ज़िक्र माह-पारों का

दिखाई देती है इस तरह रूप-रंग की बात
फ़ज़ा में रक़्स हो जिस तरह अब्र-पारों का

हुआ न राह में हाइल कोई शगूफ़ा भी
रवाँ-दवाँ ही रहा क़ाफ़िला बहारों का

मुझे भी अहल-ए-जहाँ भूल जाएँगे 'शहज़ाद'
किसे ख़याल है डूबे हुए सितारों का