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खिड़की में एक नार जो महव-ए-ख़याल है | शाही शायरी
khiDki mein ek nar jo mahw-e-KHayal hai

ग़ज़ल

खिड़की में एक नार जो महव-ए-ख़याल है

ताज सईद

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खिड़की में एक नार जो महव-ए-ख़याल है
शायद किसी के प्यार को पाने की चाल है

कमरे की चीज़ चीज़ पे है हसरतों की गर्द
आँगन में उजली धूप का फैला जमाल है

अल्फ़ाज़ के गुहर तिरी ख़ातिर पिरो लिए
ये भी तो तेरे हुस्न-ए-तलब का कमाल है

इज़हार-ए-इश्क़ करता है अब राह चलते भी
इस अहद का जवाँ बड़ा रौशन-ख़याल है

बरसों के यार कब के जुदा हो गए 'सईद'
इस शहर में ज़रूर मुरव्वत का काल है