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खेल सब आँखों का है सारा हुनर आँखों का है | शाही शायरी
khel sab aankhon ka hai sara hunar aankhon ka hai

ग़ज़ल

खेल सब आँखों का है सारा हुनर आँखों का है

इरफ़ान सिद्दीक़ी

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खेल सब आँखों का है सारा हुनर आँखों का है
फिर भी दुनिया में ख़सारा सर-ब-सर आँखों का है

हम न देखेंगे तो ये मंज़र बदल जाएँगे क्या
देखना ठहरा तो क्या नफ़-ओ-ज़रर आँखों का है

सोचना क्या है अभी कार-ए-नज़र का मा-हसल
हम तो यूँ ख़ुश हैं कि आग़ाज़-ए-सफ़र आँखों का है

रफ़्ता रफ़्ता सारे चेहरे दरमियाँ से हट गए
एक रिश्ता आज भी बाक़ी मगर आँखों का है

रास्ता क्या क्या चराग़ों की तरह तकते थे लोग
सिलसिला आँखों में ता-हद्द-ए-नज़र आँखों का है

थक चुके दोनों तमाशा-गाह-ए-आलम देख कर
आओ सो जाएँ कि इन आँखों में घर आँखों का है