ख़यालों में भी अक्सर चौंक उठा हूँ
ख़ुदा जाने मैं क्या क्या सोचता हूँ
अजब हैरानियों का सामना है
कि जैसे मैं किसी का आइना हूँ
चटानों में खिला है फूल तन्हा
ये सच है मैं उसूलों में पला हूँ
ये वज़्अ एहतियात-अंदोह-गीं है
ख़ुद अपने आप से डरने लगा हूँ
ग़ज़ल
ख़यालों में भी अक्सर चौंक उठा हूँ
मुख़तार शमीम