ख़याल ओ शौक़ को जब हम तिरी तस्वीर करते हैं
तो दिल को आईना और आँख को तनवीर करते हैं
नज़र के सामने जितना इलाक़ा है वो दिल का है
तो उस की बे-दिली के नाम ये जागीर करते हैं
हवा मिस्मार भी कर दे अगर शहर-ए-तमन्ना को
फिर उस मलबे से क़स्र-ए-आरज़ू तामीर करते हैं
हवाएँ पढ़ के अपने नाम के ख़त झूम जाती हैं
मोहब्बत से जो पत्तों पर शजर तहरीर करते हैं
हमारे लफ़्ज़ आइंदा ज़मानों से इबारत हैं
पढ़ा जाएगा कल जो आज वो तहरीर करते हैं
ग़ज़ल
ख़याल ओ शौक़ को जब हम तिरी तस्वीर करते हैं
मंज़ूर हाशमी