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ख़याल में इक न इक मज़े की नई कहानी है और हम हैं | शाही शायरी
KHayal mein ek na ek maze ki nai kahani hai aur hum hain

ग़ज़ल

ख़याल में इक न इक मज़े की नई कहानी है और हम हैं

नूह नारवी

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ख़याल में इक न इक मज़े की नई कहानी है और हम हैं
अभी तमन्ना है और दिल है अभी जवानी है और हम हैं

ग़रीक़-ए-बहर-ए-सितम न क्यूँ हों ये जाँ-फ़िशानी है और हम हैं
कि आप हैं आप की छुरी है छुरी का पानी है और हम हैं

दम-ए-अख़ीर उस को अब न सोचें ये सोचना चाहिए था पहले
मआ'ल क्या होगा ज़िंदगी का जहान-ए-फ़ानी है और हम हैं

ये इश्क़ पर हुस्न की इनायत ये हुस्न से इश्क़ की इरादत
हमारी हसरत है और तू है तिरी जवानी है और हम हैं

निगाह-ए-उल्फ़त भी हो चली कुछ सितम भी करने लगा वो ज़ालिम
अगर यही मेहरबानियाँ हैं तो कामरानी है और हम हैं

अदा ने छेड़ा नज़र ने ताका सितम ने लूटा ग़ज़ब ने मारा
ज़बान जब से खुली हमारी यही कहानी है और हम हैं

बक़ा का चर्चा जहान भर में मगर बक़ा से जहान ख़ाली
ख़याल-ए-ऐश-ए-मुदाम कैसा जहान-ए-फ़ानी है और हम हैं

अभी से तौबा अभी से तक़्वा अभी से क्या फ़िक्र-ए-दीन-ओ-उक़्बा
नई उमंगें नई तरंगें नई जवानी है और हम हैं

पहुँच पहुँच कर फ़लक पर आहें करें न अंजुम में क्यूँ इज़ाफ़ा
कि शाम से सुब्ह तक शब-ए-ग़म शरर-फ़िशानी है और हम हैं

किसे तवक़्क़ो' न आएँगे वो यक़ीं किसे था बुलाएँगे वो
ये ख़ास उन की है मेहरबानी कि मेहरबानी है और हम हैं

उठा ही देंगे नक़ाब अपनी दिखा ही देंगे वो अपना जल्वा
निभेगी कब तक ये लन-तरानी ये लन-तरानी है और हम हैं

भरे हुए चश्म-ए-तर में आँसू जिगर में भड़की हुई तप-ए-ग़म
ये आग है और ये है पानी ये आग पानी है और हम हैं

फ़ुग़ाँ तो आख़िर फ़ुग़ाँ ही ठहरी गिला तो आख़िर गिला ही ठहरा
मुहाल है जिस में साँस लेनी वो ना-तवानी है और हम हैं

नए शगूफ़े न क्यूँ खिलाएँ जो ग़ुंचा-ओ-गुल को देख पाएँ
बहार तो है चमन की रानी चमन की रानी है और हम हैं

कभी तो हम हैं यहाँ वहाँ के कभी तसव्वुर इधर उधर का
सुकून-ओ-राहत से क्या तअ'ल्लुक़ कि बद-गुमानी है और हम हैं

जता चुके दर्द-ए-दिल को अपने जो अब जताएँ तो क्या जताएँ
कही हुई भी सुनी हुई भी वही कहानी है और हम हैं

बहुत से उल्फ़त में आए तूफ़ाँ रहा किए 'नूह' भी परेशाँ
मगर वही पैहम आँसुओं की अभी रवानी है और हम हैं