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ख़याल को ज़ौ नज़र को ताबिश नफ़स को रख़शंदगी मिलेगी | शाही शायरी
KHayal ko zau nazar ko tabish nafas ko raKHshandagi milegi

ग़ज़ल

ख़याल को ज़ौ नज़र को ताबिश नफ़स को रख़शंदगी मिलेगी

बिर्ज लाल रअना

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ख़याल को ज़ौ नज़र को ताबिश नफ़स को रख़शंदगी मिलेगी
भड़क उठा सोज़-ए-ग़म जो दिल में तो हर कहीं रौशनी मिलेगी

ख़लिश की तह में सुकूँ मिलेगा अलम की तह में ख़ुशी मिलेगी
बग़ौर देखो तो मौत में भी तुम्हें नई ज़िंदगी मिलेगी

मक़ाम-ए-इंसाँ मक़ाम-ए-यज़्दाँ में फ़ासला है बस इक क़दम का
जहाँ मलेगी ख़ुदी की सरहद वहीं हद-ए-बे-ख़ुदी मिलेगी

ये ज़ौक़-ए-सज्दा शिकस्त-ख़ुर्दा तबीअतों की है ख़ुद-फ़रेबी
बशर की तस्लीम की तहों में बशर की कम-हिम्मती मिलेगी

निगाह जितनी बुलंदी होगी ये उतनी ही अर्जुमंद होगी
ब-क़द्र-ए-क़ुर्ब-ए-फ़लक किरन में हरारत-ओ-रोशनी मिलेगी

है ख़ुद-शनासी जहाँ-शनासी जहाँ-शनासी ख़ुदा-शनासी
मिली जो तुझ को ख़ुदी की दौलत तो दौलत-ए-सरमदी मिलेगी

अगर है तेरी निगाह बालिग़ अगर है तेरा शुऊर पुख़्ता
तो जेहल की ज़ुल्मतों ही से तुझ को मशअ'ल-ए-आगही मलेगी

ग़म-ओ-मुसर्रत मिलेंगे बाहम तो ज़िंदगी भी चमक उठेगी
ये रू है मंफ़ी ये रू है मुसबत मिलेगी ये रौशनी मिलेगी

रह-ए-तलब के सफ़र में 'रा'ना' सुकूँ है ख़्वाब-ओ-ख़याल यकसर
क़दम क़दम ठोकरें लगेंगी नफ़स नफ़स बरहमी मिलेगी