ख़याल-ए-तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ को टालते रहिए
हवा में कोई हयूला उछालते रहिए
पुराने आश्ना चेहरों को याद कर कर के
हुजूम-ए-ग़म में भी दिल को सँभालते रहिए
तमाम उम्र यूँही कीजे हसरतों का शुमार
तमाम उम्र यूँही दुख सँभालते रहिए
सजा के रोज़ नई महफ़िलें नए चेहरे
ज़र-ए-फ़सुर्दा-दिली को उजालते रहिए
रहें न दश्त जो सहरा-नवर्दियों के लिए
तो अपने सहन में पत्थर उछालते रहिए
न मिल सकें जो वो यारान-ए-गुल-सिफ़त 'नाहीद'
तो अपने आप को साँचों में ढालते रहिए

ग़ज़ल
ख़याल-ए-तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ को टालते रहिए
किश्वर नाहीद