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ख़याल-ए-तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ को टालते रहिए | शाही शायरी
KHayal-e-tark-e-talluq ko Talte rahiye

ग़ज़ल

ख़याल-ए-तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ को टालते रहिए

किश्वर नाहीद

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ख़याल-ए-तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ को टालते रहिए
हवा में कोई हयूला उछालते रहिए

पुराने आश्ना चेहरों को याद कर कर के
हुजूम-ए-ग़म में भी दिल को सँभालते रहिए

तमाम उम्र यूँही कीजे हसरतों का शुमार
तमाम उम्र यूँही दुख सँभालते रहिए

सजा के रोज़ नई महफ़िलें नए चेहरे
ज़र-ए-फ़सुर्दा-दिली को उजालते रहिए

रहें न दश्त जो सहरा-नवर्दियों के लिए
तो अपने सहन में पत्थर उछालते रहिए

न मिल सकें जो वो यारान-ए-गुल-सिफ़त 'नाहीद'
तो अपने आप को साँचों में ढालते रहिए