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ख़याल-ए-नावक-ए-मिज़्गाँ में बस हम सर पटकते हैं | शाही शायरी
KHayal-e-nawak-e-mizhgan mein bas hum sar paTakte hain

ग़ज़ल

ख़याल-ए-नावक-ए-मिज़्गाँ में बस हम सर पटकते हैं

भारतेंदु हरिश्चंद्र

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ख़याल-ए-नावक-ए-मिज़्गाँ में बस हम सर पटकते हैं
हमारे दिल में मुद्दत से ये ख़ार-ए-ग़म खटकते हैं

रुख़-ए-रौशन पे उस की गेसू-ए-शब-गूँ लटकते हैं
क़यामत है मुसाफ़िर रास्ता दिन को भटकते हैं

फ़ुग़ाँ करती है बुलबुल याद में गर गुल के ऐ गुलचीं
सदा इक आह की आती है जब ग़ुंचे चटकते हैं

रिहा करता नहीं सय्याद हम को मौसम-ए-गुल में
क़फ़स में दम जो घबराता है सर दे दे पटकते हैं

उड़ा दूँगा 'रसा' मैं धज्जियाँ दामान-ए-सहरा की
अबस ख़ार-ए-बयाबाँ मेरे दामन से अटकते हैं