ख़त्म रातों-रात उस गुल की कहानी हो गई
रंग बोसीदा हुए ख़ुश्बू पुरानी हो गई
जिस से रौशन था मुक़द्दर वो सितारा खो गया
ज़ुल्मतों की नज़्र आख़िर ज़िंदगानी हो गई
कल उजालों के नगर में हादसा ऐसा हुआ
चढ़ते सूरज पर दिए की हुक्मरानी हो गई
रह गई थी लाल बनने में कमी इक आँच की
आँख से गिर कर लहू की बूँद पानी हो गई
चिल्ला-ए-जाँ पर चढ़ा कर आख़िरी साँसों के तीर
मौत की सरहद में दाख़िल ज़िंदगानी हो गई
ख़ौफ़ अब आता नहीं है सीपियाँ चुनते हुए
दोस्ती अपनी समुंदर से पुरानी हो गई
किस जगह आया है तू आँखों के नीलम भूल कर
ग़म कहाँ इक़बाल-'साजिद' की निशानी हो गई
ग़ज़ल
ख़त्म रातों-रात उस गुल की कहानी हो गई
इक़बाल साजिद