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ख़त्म किया सबा ने रक़्स गुल पे निसार हो चुकी | शाही शायरी
KHatm kiya saba ne raqs gul pe nisar ho chuki

ग़ज़ल

ख़त्म किया सबा ने रक़्स गुल पे निसार हो चुकी

अकबर इलाहाबादी

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ख़त्म किया सबा ने रक़्स गुल पे निसार हो चुकी
जोश-ए-नशात हो चुका सौत-ए-हज़ार हो चुकी

रंग-ए-बनफ़शा मिट गया सुंबुल-ए-तर नहीं रहा
सेहन-ए-चमन में ज़ीनत-ए-नक़्श-ओ-निगार हो चुकी

मस्ती-ए-लाला अब कहाँ उस का प्याला अब कहाँ
दौर-ए-तरब गुज़र गया आमद-ए-यार हो चुकी

रुत वो जो थी बदल गई आई बस और निकल गई
थी जो हवा में निकहत-ए-मुश्क-ए-ततार हो चुकी

अब तक उसी रविश पे है 'अकबर'-ए-मस्त-ओ-बे-ख़बर
कह दे कोई अज़ीज़-ए-मन फ़स्ल-ए-बहार हो चुकी