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ख़ता उस की मुआफ़ी से बड़ी है | शाही शायरी
KHata uski muafi se baDi hai

ग़ज़ल

ख़ता उस की मुआफ़ी से बड़ी है

सदार आसिफ़

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ख़ता उस की मुआफ़ी से बड़ी है
मैं क्या करता सज़ा देनी पड़ी है

नहीं चल पाऊँगा मैं साथ इस के
ये दुनिया बे-सबब ज़िद पर अड़ी है

हवा ने फाड़ दी तस्वीर लेकिन
अभी इक कील सीने में गड़ी है

वो मस्जिद घर न बन जाए किसी का
नमाज़ें बंद हैं ख़ाली पड़ी है

निकल आया अँधेरे में कहाँ मैं
मिरी परछाईं बिस्तर पर पड़ी है