ख़ता क़ुबूल नहीं है तो ख़ुद ख़ता कर देख
या एक बार बराबर में मेरे आ कर देख
ये मेरा सब्र है ये मुझ पिसे हुए का सब्र
ख़ुदा-ए-क़हर तू आ क़हर आज़मा कर देख
ग़ुरूर वार दिया मैं ने फी-सबीलिल-इश्क़
ऐ इश्क़ तू भी तो अब थोड़ा हौसला कर देख
मैं दिल का अच्छा हूँ लेकिन ज़रा सा हूँ गुस्ताख़
तू एक बार मुझे सीने से लगा कर देख
तू आज़मा तो चुका है ये सारे मक्र-ओ-फ़रेब
बस अब अज़ान-ए-मोहब्बत ज़बाँ पे ला कर देख
वो कुछ बताने से शायद झिझकती होगी 'वक़ार'
तू एक बार उसे नाम से बुला कर देख
ग़ज़ल
ख़ता क़ुबूल नहीं है तो ख़ुद ख़ता कर देख
वक़ार ख़ान