ख़ता मैं ने कोई भारी नहीं की
अमीर-ए-शहर से यारी नहीं की
मिरे ऐबों को गिनवाया तो सब ने
किसी ने मेरी ग़म-ख़्वारी नहीं की
मिरे शेरों में क्या तासीर होती
कभी मैं ने अदाकारी नहीं की
किसी मंसब किसी ओहदे की ख़ातिर
कोई तदबीर बाज़ारी नहीं की
बस इतनी बात पर दुनिया ख़फ़ा है
कि मैं ने तुझ से ग़द्दारी नहीं की
ग़ज़ल
ख़ता मैं ने कोई भारी नहीं की
ताबिश मेहदी