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ख़त बहुत उस के पढ़े हैं कभी देखा नहीं है | शाही शायरी
KHat bahut uske paDhe hain kabhi dekha nahin hai

ग़ज़ल

ख़त बहुत उस के पढ़े हैं कभी देखा नहीं है

फ़रहत एहसास

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ख़त बहुत उस के पढ़े हैं कभी देखा नहीं है
क्या मिरे पर्दा-नशीं का कोई चेहरा नहीं है

शहर इतना भी न कर ज़ुल्म कि ज़िद पर आ जाऊँ
मेरा सहरा से तअ'ल्लुक़ अभी टूटा नहीं है

क्या दिखाता है मिरे नाम पे आईना-ए-शहर
मुद्दतों से मिरा अपना कोई चेहरा नहीं है

जिस्म की प्यास को हूरों की बशारत पे न टाल
ये हमारा दिल-ए-सादा कोई बच्चा नहीं है

कुछ नहीं तिश्नगी-ए-दीदा-ए-बीना का इलाज
ख़्वाब तक में भी कोई सूरत-ए-दरिया नहीं है

कब मुझे तुझ से मोहब्बत है उरूस-ए-दुनिया
अज़दवाजी सा ये रिश्ता कोई रिश्ता नहीं है

'फ़रहत-एहसास' नया चाहिए उस को हर रात
मगर अफ़सोस कि उस सा कोई पैदा नहीं है