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ख़सारे में रहे लेकिन न छोड़ी सादगी हम ने | शाही शायरी
KHasare mein rahe lekin na chhoDi sadgi humne

ग़ज़ल

ख़सारे में रहे लेकिन न छोड़ी सादगी हम ने

ग़यास अंजुम

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ख़सारे में रहे लेकिन न छोड़ी सादगी हम ने
ब-हर-सूरत निभाई दुश्मनों से दोस्ती हम ने

सलफ़ थे जो हमारे मिस्ल-ए-ख़ुरशीद-ओ-मह-ओ-अंजुम
उन्ही के रास्ते पे चल के पाई रौशनी हम ने

अदब के दाएरे को दे दी वुसअ'त सारे आलम की
कि उस की आबियारी की बराए ज़िंदगी हम ने

जहाँ वालो न मानो तुम मगर सच है कि दुनिया में
बढ़ाया है तह-ए-ख़ंजर वक़ार-ए-आशिक़ी हम ने

यहाँ सच बोलने पर ज़हर का प्याला ही मिलता है
अजब रस्म-ए-सितम देखी है तेरे शहर की हम ने

वसाएल जब कि सारे हो चुके थे बे-असर 'अंजुम'
चराग़-ए-दिल जला कर दूर की है तीरगी हम ने