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ख़सारा-दर-ख़सारा कर लिया जाए | शाही शायरी
KHasara-dar-KHasara kar liya jae

ग़ज़ल

ख़सारा-दर-ख़सारा कर लिया जाए

अली मुज़म्मिल

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ख़सारा-दर-ख़सारा कर लिया जाए
जुनूँ को इस्तिआ'रा कर लिया जाए

ये नुक़्ता भी क़रीन-ए-मस्लहत है
अदावत को गवारा कर लिया जाए

दरून-ए-दिल यम-ए-अफ़्सुर्दगी है
कोई तिनका सहारा कर लिया जाए

सुख़न-हाए बरा-ए-गुफ़्तनी से
ग़ज़ल को शाह-पारा कर लिया जाए

सर-ए-आब-ए-रवाँ सहरा बिछा कर
सराबों से किनारा कर लिया जाए

ज़िया आँखों की पुतली में समो कर
अँधेरे का नज़ारा कर लिया जाए

भला क्या खेल है कार-ए-मोहब्बत
जो दानिस्ता दोबारा कर लिया जाए

ये दिल में है कि सारे अश्क पी कर
बदन को मिट्टी गारा कर किया जाए

बसानी है कोई बस्ती कि सहरा
'अली' अब इस्तिख़ारा कर लिया जाए