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ख़राब-ओ-ख़स्ता हुए ख़ाक में शबाब मिला | शाही शायरी
KHarab-o-KHasta hue KHak mein shabab mila

ग़ज़ल

ख़राब-ओ-ख़स्ता हुए ख़ाक में शबाब मिला

हफ़ीज़ जौनपुरी

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ख़राब-ओ-ख़स्ता हुए ख़ाक में शबाब मिला
हमें ये दिल न मिला जान का अज़ाब मिला

किसी की याद में बे-शुबह बे-क़रार है तू
कि आज है तिरी शोख़ी में इज़्तिराब मिला

शराब पी तो गुनहगार मैं हुआ वाइ'ज़
बुराई की जो मिरी तुझ को क्या सवाब मिला

मिले वो ऐश-ए-गुज़िश्ता भी ऐ ख़ुदा मुझ को
बहिश्त में जो दोबारा मुझे शबाब मिला

बड़ी करीम है पीर-ए-मुग़ाँ की भी सरकार
कि जब मिला मुझे साग़र अलल-हिसाब मिला

कुछ आरज़ू न रही तर्क-ए-आरज़ू के सिवा
मिरे सवाल का ऐसा मुझे जवाब मिला

गया जो दिल तो मिला दाग़-ए-आरज़ू मुझ को
इक आफ़्ताब जो खोया इक आफ़्ताब मिला

'हफ़ीज़' तुम को वो नाकाम-ए-वस्ल कहते हैं
बुरा न मानो ये अच्छा तुम्हें ख़िताब मिला