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ख़मोश रह कर पुकारती है | शाही शायरी
KHamosh rah kar pukarti hai

ग़ज़ल

ख़मोश रह कर पुकारती है

नसीम अब्बासी

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ख़मोश रह कर पुकारती है
वो आँख कितनी शरारती है

है चाँदनी सा मिज़ाज इस का
समुंदरों को उभारती है

में बादलों में घिरा जज़ीरा
वो मुझ में सावन गुज़ारती है

कि जैसे मैं इस को चाहता हूँ
कुछ ऐसे ख़ुद को सँवारती है

ख़फ़ा हो मुझ से तो अपने अंदर
वो बारिशों को उतारती है