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ख़ल्वत में ख़यालों की ये अंजुमन-आराई | शाही शायरी
KHalwat mein KHayalon ki ye anjuman-arai

ग़ज़ल

ख़ल्वत में ख़यालों की ये अंजुमन-आराई

कृष्ण मुरारी

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ख़ल्वत में ख़यालों की ये अंजुमन-आराई
आबाद है अब कितना वीराना-ए-तन्हाई

ऐसे भी मराहिल कुछ आए रह-ए-हस्ती में
महसूस हुआ मंज़िल ख़ुद पास चली आई

तू शम-ए-मसर्रत है ग़म-ख़ाना-ए-इम्काँ में
दम से तिरे क़ाएम है हर बज़्म की रा'नाई

है याद तिरी क्या क्या माइल-ब-करम मुझ पर
गुज़रे हुए लम्हों को जो साथ लिए आई

पिघले हुए सोने से उभरीं कई तस्वीरें
दरिया के किनारों पर जब धूप उतर आई

इस गुलशन-ए-हस्ती का हर रंग निराला है
जब रोने लगी शबनम फूलों को हँसी आई