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ख़ला-ए-ज़ेहन के गुम्बद में गूँजता हूँ मैं | शाही शायरी
KHala-e-zehn ke gumbad mein gunjta hun main

ग़ज़ल

ख़ला-ए-ज़ेहन के गुम्बद में गूँजता हूँ मैं

आज़ाद गुलाटी

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ख़ला-ए-ज़ेहन के गुम्बद में गूँजता हूँ मैं
ख़ुद अपने अहद-ए-गुज़िश्ता की इक सदा हूँ मैं

समेट लाता हूँ मोती तुम्हारी यादों के
जो ख़ल्वतों के समुंदर में डूबता हूँ मैं

तुम्हें भी मुझ में न शायद वो पहली बात मिले
ख़ुद अपने वास्ते अब कोई दूसरा हूँ मैं

जो दे सको तो ख़ुनुक साए दो मोहब्बत के
ख़याल-ओ-ख़्वाब की दुनिया में जल रहा हूँ मैं

वो ख़ुद मुझी में कहीं खो गया न हो 'आज़ाद'
जिसे ख़ला-ए-ज़माना में ढूँडता हूँ मैं