ख़ैर से दिल को तिरी याद से कुछ काम तो है
वस्ल की शब न सही हिज्र का हंगाम तो है
नूर-ए-अफ़्लाक से रौशन हो शब-ए-ग़म कि न हो
चाँद तारों से मिरा नामा ओ पैग़ाम तो है
कम नहीं ऐ दिल-ए-बेताब मता-ए-उम्मीद
दस्त-ए-मय-ख़्वार में ख़ाली ही सही जाम तो है
बाम-ए-ख़ुर्शीद से उतरे कि न उतरे कोई सुब्ह
ख़ेमा-ए-शब में बहुत देर से कोहराम तो है
जो भी इल्ज़ाम मिरे इश्क़ पे आया हो 'नईम'
उन से वाबस्ता किसी तौर मिरा नाम तो है
ग़ज़ल
ख़ैर से दिल को तिरी याद से कुछ काम तो है
हसन नईम