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ख़बर क्या थी न मिलने के नए अस्बाब कर देगा | शाही शायरी
KHabar kya thi na milne ke nae asbab kar dega

ग़ज़ल

ख़बर क्या थी न मिलने के नए अस्बाब कर देगा

मोहसिन भोपाली

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ख़बर क्या थी न मिलने के नए अस्बाब कर देगा
वो कर के ख़्वाब का वादा मुझे बे-ख़्वाब कर देगा

किसी दिन देखना वो आ के मेरी किश्त-ए-वीराँ पर
उचटती सी नज़र डालेगा और शादाब कर देगा

वो अपना हक़ समझ कर भूल जाएगा हर इक एहसाँ
फिर इस रस्म-ए-अना को दाख़िल-ए-आदाब कर देगा

न करना ज़ोम उस का तर्ज़-ए-इस्तिदलाल ऐसा है
कि नक़्श-ए-संग को तहरीर-ए-मौज-ए-आब कर देगा

असीर अपने ख़यालों का बना कर एक दिन 'मोहसिन'
ख़बर क्या थी मुझे मेरे लिए कमयाब कर देगा