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ख़बर कहाँ थी मुझे पहले इस ख़ज़ाने की | शाही शायरी
KHabar kahan thi mujhe pahle is KHazane ki

ग़ज़ल

ख़बर कहाँ थी मुझे पहले इस ख़ज़ाने की

दिनेश कुमार

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ख़बर कहाँ थी मुझे पहले इस ख़ज़ाने की
ग़मों ने राह दिखाई शराब-ख़ाने की

चराग़-ए-दिल ने की हसरत जो मुस्कुराने की
तो खिलखिला के हँसीं आँधियाँ ज़माने की

मैं शाइ'री का हुनर जानता नहीं बे-शक
अजीब धुन है मुझे क़ाफ़िया मिलाने की

वजूद अपना मिटाया किसी की चाहत में
बस इतनी राम-कहानी है इस दीवाने की

वो घोंसला भी बना लेगा बा'द में अपना
अभी है फ़िक्र परिंदे को आब-ओ-दाने की

मैं अश्क बन के गिरा हूँ ख़ुद अपनी नज़रों से
कहाँ मिलेगी जगह मुझ को सर छुपाने की

अनाथ बच्चों की आहें सवाल करती हैं
ख़ुदा को क्या थी ज़रूरत जहाँ बनाने की