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ख़ातिर से ग़ुबार धो गए हम | शाही शायरी
KHatir se ghubar dho gae hum

ग़ज़ल

ख़ातिर से ग़ुबार धो गए हम

इश्क़ औरंगाबादी

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ख़ातिर से ग़ुबार धो गए हम
जितना कि हँसे थे रो गए हम

जब देखा निगाह-ए-महर से यार
जिऊँ ज़र्रा कुछ और हो गए हम

ग़फ़लत पे न होने पाए होश्यार
टुक आँख खुली कि सो गए हम

तुझ इश्क़ के सोज़ में सरापा
जिऊँ शम्-ए-गुदाज़ हो गए हम

इस बहर पे रो के मिस्ल-ए-नीसाँ
गो अपना निशाँ डुबो गए हम

ऐ इश्क़ ब-क़ौल-ए-'दर्द' सच है
कुछ लाए न थे कि खो गए हम