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खाते हैं हम हचकोले इस पागल संसार के बीच | शाही शायरी
khate hain hum hachkole is pagal sansar ke bich

ग़ज़ल

खाते हैं हम हचकोले इस पागल संसार के बीच

सरस्वती सरन कैफ़

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खाते हैं हम हचकोले इस पागल संसार के बीच
जैसे कोई टूटी कश्ती फँस जाए मंजधार के बीच

उन के आगे घंटों की अर्ज़-ए-वफ़ा और क्या पाया
एक तबस्सुम मुबहम सा इक़रार और इंकार के बीच

दोनों ही अंधे हैं मगर अपने अपने ढब के हैं
हम तो फ़र्क़ न कर पाए काफ़िर और दीं-दार के बीच

इश्क़ पे बुल-हवसी का तअ'न ये भी कोई बात हुई
कोई ग़रज़ तो होती है प्यार से हर ईसार के बीच

यूँ तो हमारा दामन बस एक फटा कपड़ा है मगर
ढूँढो तो पाओगे यहाँ सौ सौ दिल हर तार के बीच

जैसे काले कीचड़ में इक सुर्ख़ कमल हो जल्वा-नुमा
ऐसे दिखाई देते हो हम को तो अग़्यार के बीच

ये है दयार-ए-इश्क़ यहाँ 'कैफ़' ख़िरद से काम न ले
फ़र्क़ नहीं कर पाएगा मजनूँ ओ होश्यार के बीच