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ख़ानदानी रिश्तों में अक्सर रक़ाबत है बहुत | शाही शायरी
KHandani rishton mein aksar raqabat hai bahut

ग़ज़ल

ख़ानदानी रिश्तों में अक्सर रक़ाबत है बहुत

बशीर बद्र

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ख़ानदानी रिश्तों में अक्सर रक़ाबत है बहुत
घर से निकलो तो ये दुनिया ख़ूबसूरत है बहुत

अपने कॉलेज में बहुत मग़रूर जो मशहूर है
दिल मिरा कहता है उस लड़की में चाहत है बहुत

उन के चेहरे चाँद तारों की तरह रौशन रहे
जिन ग़रीबों के यहाँ हुस्न-ए-क़नाअत है बहुत

हम से हो सकती नहीं दुनिया की दुनिया-दारियाँ
इश्क़ की दीवार के साए में राहत है बहुत

धूप की चादर मिरे सूरज से कहना भेज दे
ग़ुर्बतों का दौर है जाड़ों की शिद्दत है बहुत

इन अँधेरों में जहाँ सहमी हुई थी ये ज़मीं
रात से तन्हा लड़ा जुगनू में हिम्मत है बहुत