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ख़ाना-ए-दिल का जो तवाइफ़ है | शाही शायरी
KHana-e-dil ka jo tawaif hai

ग़ज़ल

ख़ाना-ए-दिल का जो तवाइफ़ है

वलीउल्लाह मुहिब

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ख़ाना-ए-दिल का जो तवाइफ़ है
क़स्द-ए-बैत-उल-हरम से ख़ाइफ़ है

आइना हुस्न के सहीफ़े का
लौह-पर्वाज़ है सहाएफ़ है

गुल-रुख़ों में लतीफ़ा-गो हैं हज़ार
पर वो गुलदस्ता-ए-ज़राइफ़ है

ज़िक्र तेरा ब-रब्ब-ए-का'बा सनम
हम को औराद है वज़ाइफ़ है

क्या कहूँ मैं ज़राफ़तें उस की
बे-सुख़न ,मा'दिन-ए-ज़राइफ़ है

नश्शा-ए-होश से ये कैफ़िय्यत
आलम-ए-कैफ़ पुर-कवाइफ़ है

ऐ 'मुहिब' कीजिए दिल उस की नज़र
यही तोहफ़ा यही तहाइफ़ है