ख़ाना-ए-दिल का जो तवाइफ़ है
क़स्द-ए-बैत-उल-हरम से ख़ाइफ़ है
आइना हुस्न के सहीफ़े का
लौह-पर्वाज़ है सहाएफ़ है
गुल-रुख़ों में लतीफ़ा-गो हैं हज़ार
पर वो गुलदस्ता-ए-ज़राइफ़ है
ज़िक्र तेरा ब-रब्ब-ए-का'बा सनम
हम को औराद है वज़ाइफ़ है
क्या कहूँ मैं ज़राफ़तें उस की
बे-सुख़न ,मा'दिन-ए-ज़राइफ़ है
नश्शा-ए-होश से ये कैफ़िय्यत
आलम-ए-कैफ़ पुर-कवाइफ़ है
ऐ 'मुहिब' कीजिए दिल उस की नज़र
यही तोहफ़ा यही तहाइफ़ है
ग़ज़ल
ख़ाना-ए-दिल का जो तवाइफ़ है
वलीउल्लाह मुहिब