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ख़ामुशी को सदा में रक्खा गया | शाही शायरी
KHamushi ko sada mein rakkha gaya

ग़ज़ल

ख़ामुशी को सदा में रक्खा गया

लियाक़त जाफ़री

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ख़ामुशी को सदा में रक्खा गया
एक जादू हवा में रक्खा गया

चाक-ए-जाँ से उतार कर कूज़ा
सहन-ए-आब-ओ-हवा में रक्खा गया

फिर मुरत्तब किए गए जज़्बात
इश्क़ को इब्तिदा में रक्खा गया

संग-ए-बुनियाद थी ख़लाओं की
एक पत्थर हवा में रक्खा गया

एक कोंपल सजाई अचकन पर
एक ख़ंजर क़बा में रक्खा गया

एक दरिया उठा के लाया गया
दश्त-ए-कर्ब-ओ-बला में रक्खा गया

मुश्तहर की गईं दुआएँ बहुत
और असर बद-दुआ में रक्खा गया

मुझ को तख़्लीक़ से गुज़ारा गया
और ख़ुदा की रज़ा में रक्खा गया

इन्किशाफ़ात हो चुके सारे
मोजज़े को अना में रक्खा गया