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ख़ामोशियों के गहरे समुंदर में डूब जाएँ | शाही शायरी
KHamoshiyon ke gahre samundar mein Dub jaen

ग़ज़ल

ख़ामोशियों के गहरे समुंदर में डूब जाएँ

मुख़तार शमीम

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ख़ामोशियों के गहरे समुंदर में डूब जाएँ
खो जाएँ इस तरह कि फिर अपना पता न पाएँ

है मौत का पयाम किनारों की ज़िंदगी
मासूम मछलियों से कहो जाल में न आएँ

दश्त-ए-अलम में बर्ग-ए-ख़िज़ाँ-दीदा की तरह
बस ऐ हुजूम-ए-शौक़ कहीं हम बिखर न जाएँ

वीरानियाँ कि आँखों में सहरा बसा हुआ
मजबूरी-ए-हयात न आँसू भी मुस्कुराएँ

चेहरे झुलस रहे हैं हवादिस की धूप में
फिर भी अलम-नसीब हज़ारों में जगमगाएँ

ऐसा न हो कि दिल का हर इक ज़ख़्म आँच दे
कह दीजिए 'शमीम' वो मेरी ग़ज़ल न गाएँ