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ख़ामोश ज़िंदगी जो बसर कर रहे हैं हम | शाही शायरी
KHamosh zindagi jo basar kar rahe hain hum

ग़ज़ल

ख़ामोश ज़िंदगी जो बसर कर रहे हैं हम

रईस अमरोहवी

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ख़ामोश ज़िंदगी जो बसर कर रहे हैं हम
गहरे समुंदरों में सफ़र कर रहे हैं हम

सदियों तक एहतिमाम-ए-शब-ए-हिज्र में रहे
सदियों से इंतिज़ार-ए-सहर कर रहे हैं हम

ज़र्रे के ज़ख़्म दिल पे तवज्जोह किए बग़ैर
दरमान-ए-दर्द-ए-शम्स-ओ-क़मर कर रहे हैं हम

हर चंद नाज़-ए-हुस्न पे ग़ालिब न आ सके
कुछ और मारके हैं जो सर कर रहे हैं हम

सुब्ह-ए-अज़ल से शाम-ए-अबद तक है एक दिन
ये दिन तड़प तड़प के बसर कर रहे हैं हम

कोई पुकारता है हर इक हादसे के साथ
तख़लीक़-ए-काएनात-ए-दिगर कर रहे हैं हम

ऐ अर्सा-ए-तलब के सुबुक-सैर क़ाफ़िलो
ठहरो कि नज़्म-ए-राह-ए-गुज़र कर रहे हैं हम

लिख लिख के अश्क ओ ख़ूँ से हिकायात-ए-ज़िंदगी
आराइश-ए-किताब-ए-बशर कर रहे हैं हम

तख़मीना-ए-हवादिस-ए-तूफ़ाँ के साथ साथ
बत्न-ए-सदफ में वज़्न-ए-गोहर कर रहे हैं हम

हम अपनी ज़िंदगी तो बसर कर चुके 'रईस'
ये किस की ज़ीस्त है जो बसर कर रहे हैं हम