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ख़ामोश थे तुम और बोलता था बस एक सितारा आँखों में | शाही शायरी
KHamosh the tum aur bolta tha bas ek sitara aankhon mein

ग़ज़ल

ख़ामोश थे तुम और बोलता था बस एक सितारा आँखों में

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

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ख़ामोश थे तुम और बोलता था बस एक सितारा आँखों में
मैं कैसे न रुकता चलने लगा जब सुर्ख़ इशारा आँखों में

मंज़र में किनारों से बाहर दरिया-ए-मोहब्बत बहता है
और पस-मंज़र में नीले से आँचल का किनारा आँखों में

हर साल बहार से पहले मैं पानी पर फूल बनाता हूँ
फिर चारों मौसम लिख जाते हैं नाम तुम्हारा आँखों में

अब कहने वाले कहते हैं इस शहर में रात नहीं होती
इक ऐसा ही दिन था वो चेहरा जब मैं ने उतारा आँखों में

सोचा है तुम्हारी आँखों से अब मैं उन को मिलवा ही दूँ
कुछ ख़्वाब जो ढूँडते फिरते हैं जीने का सहारा आँखों में