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ख़ामोश हैं लब और आँखों से आँसू हैं कि पैहम बहते हैं | शाही शायरी
KHamosh hain lab aur aankhon se aansu hain ki paiham bahte hain

ग़ज़ल

ख़ामोश हैं लब और आँखों से आँसू हैं कि पैहम बहते हैं

जलालुद्दीन अकबर

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ख़ामोश हैं लब और आँखों से आँसू हैं कि पैहम बहते हैं
हम सामने उन के बैठे हैं और क़िस्सा-ए-फ़ुर्क़त कहते हैं

अब हुस्न-ओ-इश्क़ में फ़र्क़ नहीं अब दोनों की इक हालत है
मैं उन को देखता रहता हूँ वो मुझ को देखते रहते हैं

उन की वो हया वो ख़ामोशी अपनी वो मोहब्बत की नज़रें
वो सुनने को सब कुछ सुनते हैं हम कहने को सब कुछ कहते हैं

इस शौक़-ए-फ़रावाँ की यारब आख़िर कोई हद भी है कि नहीं
इंकार करें वो या वा'दा हम रास्ता देखते रहते हैं

हमदर्द नहीं हमराज़ नहीं किस से कहिए क्यूँ कर कहिए
जो दिल पे गुज़रती रहती है जो जान पे सदमे सहते हैं

आ देख कि ज़ालिम फ़ुर्क़त में क्या हाल मिरा बेहाल हुआ
आहों से शरारे झड़ते हैं आँखों से दरिया बहते हैं

'अकबर' शायद दिल खो बैठे वो जलसे वो अहबाब नहीं
तन्हा ख़ामोश से फिरते हैं हर वक़्त उदास से रहते हैं