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ख़ाम होने के इंतिज़ार में हूँ | शाही शायरी
KHam hone ke intizar mein hun

ग़ज़ल

ख़ाम होने के इंतिज़ार में हूँ

मक़सूद वफ़ा

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ख़ाम होने के इंतिज़ार में हूँ
आम होने के इंतिज़ार में हूँ

मैं जिसे काम ही नहीं कोई
काम होने के इंतिज़ार में हूँ

रख के शीशा-ओ-जाम सामने मैं
शाम होने के इंतिज़ार में हूँ

अपनी गुमनाम हसरतों में 'वफ़ा'
नाम होने के इंतिज़ार में हूँ