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ख़ाली बैठे क्यूँ दिन काटें आओ रे जी इक काम करें | शाही शायरी
Khaali baiThe kyun din kaTen aao re ji ek kaam karen

ग़ज़ल

ख़ाली बैठे क्यूँ दिन काटें आओ रे जी इक काम करें

आरज़ू लखनवी

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ख़ाली बैठे क्यूँ दिन काटें आओ रे जी इक काम करें
वो तो हैं राजा हम बनें प्रजा और झुक झुक के सलाम करें

खुल पड़ने में नाकामी है गुम हो कर कुछ काम करें
देस पुराना भेस बना हो नाम बदल कर नाम करें

दोनों जहाँ में ख़िदमत तेरी ख़ादिम को मख़दूम बनाए
परियाँ जिस के पाँव दबाएँ हूरें जिस का काम करें

हिज्र का सन्नाटा खो देगी गहमा-गहमी नालों की
रात अकेले क्यूँकर काटें सब की नींद हराम करें

मेरे बुरा कहलाने से तो अच्छे बन नहीं सकते आप
बैठे-बैठाए ये क्या सूझी आओ उसे बदनाम करें

दिल की ख़ुशी पाबंद न निकली रस्म-ओ-रिवाज-ए-आलम की
फूलों पर तो चैन न आए काँटों पर आराम करें

ऐसे ही काम किया करती है गर्दिश उन की आँखों की
शाम को चाहे सुब्ह बना दें सुब्ह को चाहे शाम करें

ला-महदूद फ़ज़ा में फिर कर हद कोई क्या डालेगा
पुख़्ता-कार-ए-जुनूँ हम भी हैं क्यूँ ये ख़याल-ए-ख़ाम करें

नाम-ए-वफ़ा से चिढ़ उन को और 'आरज़ू' इस ख़ू से मजबूर
क्यूँकर आख़िर दिल बहलाएँ किस वहशी को राम करें