ख़ाक थे कहकशाँ के थे ही नहीं
हम किसी आसमाँ के थे ही नहीं
उस ने ऐसा किया नज़र-अंदाज़
जैसे हम दास्ताँ के थे ही नहीं
तुम ने जो भी सवाल हम से किए
वो सवाल इम्तिहाँ के थे ही नहीं
छोड़ कर जो चले गए उस को
हाँ वो हिन्दोस्ताँ के थे ही नहीं
इतनी जल्दी जो भर गए हैं ज़ख़्म
जिस्म के थे ये जाँ के थे ही नहीं
शे'र दिल में उतर नहीं पाए
क्यूँकि दिल की ज़बाँ के थे ही नहीं
मसअला था तो बस अना का था
फ़ासले दरमियाँ के थे ही नहीं

ग़ज़ल
ख़ाक थे कहकशाँ के थे ही नहीं
ज़िया ज़मीर