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ख़ाक ओ ख़ला का हिसार और मैं | शाही शायरी
KHak o KHala ka hisar aur main

ग़ज़ल

ख़ाक ओ ख़ला का हिसार और मैं

अज़ीज अहमद ख़ाँ शफ़क़

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ख़ाक ओ ख़ला का हिसार और मैं
हद्द-ए-नज़र तक ग़ुबार और मैं

शाम ओ सहर इंतिज़ार और मैं
सिलसिला-ए-ए'तिबार और मैं

बिखरे हुए शाहकार और मैं
दूर तक इंतिशार और मैं

दिल में उतरती हुई उस की याद
आलम-ए-बे-इख़्तियार और मैं

सर पे घनी धूप का है साएबान
पाँव-तले रेग-ज़ार और मैं