ख़ाक ओ ख़ला का हिसार और मैं
हद्द-ए-नज़र तक ग़ुबार और मैं
शाम ओ सहर इंतिज़ार और मैं
सिलसिला-ए-ए'तिबार और मैं
बिखरे हुए शाहकार और मैं
दूर तक इंतिशार और मैं
दिल में उतरती हुई उस की याद
आलम-ए-बे-इख़्तियार और मैं
सर पे घनी धूप का है साएबान
पाँव-तले रेग-ज़ार और मैं
ग़ज़ल
ख़ाक ओ ख़ला का हिसार और मैं
अज़ीज अहमद ख़ाँ शफ़क़