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कौन से दिन तिरी याद ऐ बुत-ए-सफ़्फ़ाक नहीं | शाही शायरी
kaun se din teri yaad ai but-e-saffak nahin

ग़ज़ल

कौन से दिन तिरी याद ऐ बुत-ए-सफ़्फ़ाक नहीं

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

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कौन से दिन तिरी याद ऐ बुत-ए-सफ़्फ़ाक नहीं
कौन सी शब है कि ख़ंजर से जिगर चाक नहीं

लुत्फ़-ए-क़ातिल में तअम्मुल नहीं पर क्या कीजे
सर-ए-शोरीदा मिरा क़ाबिल-ए-फ़ितराक नहीं

तुझ पर ऐ दिलबर-ए-आलम जो हर इक मरता है
इस लिए मरने से मेरे कोई ग़मनाक नहीं

दिल हुआ पाक तो फिर कौन नज़र करता है
और दिल पाक नहीं है तो नज़र पाक नहीं

इल्म और जहल में कुछ फ़र्क़ न हो क्या मअ'नी
हम भी बेबाक हैं पर ग़ैर से बेबाक नहीं

क़ैस को फ़ज़्ल-ए-तक़द्दुम है वगरना याँ क्या
सर-ए-शोरीदा नहीं या जिगर-ए-चाक नहीं

मा-सिवा अल्लाह न रहे 'शेफ़्ता' हरगिज़ दिल में
ख़ुसरवी काख़ सज़ा-ए-ख़स-ओ-ख़ाशाक नहीं