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कौन कहता था कि ये भी हौसला हो जाएगा | शाही शायरी
kaun kahta tha ki ye bhi hausla ho jaega

ग़ज़ल

कौन कहता था कि ये भी हौसला हो जाएगा

ज़ाहिदुल हक़

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कौन कहता था कि ये भी हौसला हो जाएगा
'मीर' ओ 'ग़ालिब' से हमारा सिलसिला हो जाएगा

हम चले हैं कूचा-ए-क़ातिल को ये सोचे बग़ैर
तुम न आओ साथ तब भी क़ाफ़िला हो जाएगा

जिस क़लंदर ने रखा ठोकर में तख़्त-ओ-ताज को
वो ज़रा सा सर हिला दे ज़लज़ला हो जाएगा

बद-दुआओं ने मुझे महफ़ूज़ रक्खा आज तक
तुम दुआ देने लगे तो मसअला हो जाएगा