कौन कहता है तुम अदा न करो
पर वफ़ा की जगह जफ़ा न करो
सर्व कट जाएँगे पिसेगी हिना
इस तरह बाग़ में फिरा न करो
हँस रहे हैं अभी ख़ुशी में वो
मेरे रोने का तज़्किरा न करो
ज़ख़्म-ए-दिल पर न हो नमक-पाशी
इस मज़े से तो आश्ना न करो
है क़यामत तुम्हारी अटखेली
हश्र ऐ जान-ए-मन बपा न करो
ख़िर्मन-ए-दिल पे बर्क़ गिरती है
मेरे रोने पे तुम हिंसा न करो
नेमत-ए-इश्क़ है ये दाग़-ए-जिगर
शुक्र-ए-हक़ के सिवा गिला न करो
है शब-ए-वस्ल बे-तकल्लुफ़ हो
शोख़ियाँ कहती हैं हया न करो
हूँ गिरफ़्तार-ए-उल्फ़त-ए-गेसू
मुझ को बहर-ए-ख़ुदा रिहा न करो
शौक़ कहता है ख़ुद चले जाओ
मिन्नत-ए-नामा-बर किया न करो
दिल लगाना बुरा है ऐ 'आजिज़'
चुप रहो उस का तज़्किरा न करो
ग़ज़ल
कौन कहता है तुम अदा न करो
पीर शेर मोहम्मद आजिज़