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कौन कहता है कि वहशत मिरे काम आई है | शाही शायरी
kaun kahta hai ki wahshat mere kaam aai hai

ग़ज़ल

कौन कहता है कि वहशत मिरे काम आई है

आबिद मलिक

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कौन कहता है कि वहशत मिरे काम आई है
ये कोई और अज़िय्यत मिरे काम आई है

यूँही मैं तैरता फिरता नहीं सहराओं में
एक दरिया की नसीहत मिरे काम आई है

लोग दीवाना समझते ही नहीं थे मुझ को
मिरी बिगड़ी हुई हालत मिरे काम आई है

वर्ना जन्नत से कहाँ मुझ को निकाला जाता
जो नहीं की वो इबादत मिरे काम आई है

आख़िर-ए-कार तिरा हिज्र मयस्सर आया
अब कहीं जा के मोहब्बत मिरे काम आई है